इतिहास के वो 15 दिन जब इस्लाम खतरे में था

इतिहास के वो 15 दिन जब इस्लाम खतरे में था

आज से 39 साल पहले नवंबर के महीने में सऊदी अरब के इतिहास में एक ऐसी घटना हुई, जिसने 15 दिनों तक इस्लाम को हिलाकर रख दिया. ये वो घटना थी, जिसमें सलाफ़ी समूह ने इस्लाम की सबसे पवित्र जगह मक्का की मस्जिद को अपने क़ब्ज़े में ले लिया था. इस घटना में सैकड़ों लोगों की जान चली गई थी. जब कुछ हथियार बंद लोगो ने मक्का की मस्जिद पर जबरन कब्ज़ा करने की कोशिश की। ये हथियार बंद समूह अति कट्टरपंथी सुन्नी मुस्लिम सलाफ़ी थे. बदू मूल के युवा सऊदी प्रचारक जुहेमान अल-ओतायबी उनका नेतृत्व कर रहे थे. विद्रोहियों ने घोषित किया कि महदी (“इस्लाम का उद्धारक”) उनके नेता के रूप में आया था – मोहम्मद अब्दुल्ला अल-कहतानी – और मुसलमानों को उनके पालन करने के लिए बुलाया। लगभग दो हफ्ते तक सऊदी विशेष बल, पाकिस्तानी और फ्रेंच कमांडो की मदद से, परिसर को फिर से प्राप्त करने के लिए लड़ाई लड़ी।
उस दिन मक्का मस्जिद में देश-विदेश से आए हज़ारों हज यात्री शाम के समय नमाज़ का इंतज़ार कर रहे थे. यह मस्जिद इस्लाम की सबसे पवित्र जगह काबा के इर्द-गिर्द बनी है. जब नमाज़ ख़त्म होने को आई तो सफ़ेद रंग के कपड़े पहने लगभग 200 लोगों ने ऑटोमैटिक हथियार निकाल लिए. इनमें से कुछ इमाम को घेरकर खड़े हो गए. जैसे ही नमाज़ ख़त्म हुई, उन्होंने मस्जिद के माइक को अपने क़ब्ज़े में ले लिया. इसके बाद माइक से एलान किया गया, “हम माहदी के आगमन का एलान करते हैं, जो अन्याय और अत्याचारों से भरी इस धरती में न्याय और निष्पक्षता लाएंगे.”

इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार माहदी ऐसे उद्धारक हैं, जो क़यामत से पहले राज करते हुए बुराई का नाश करेंगे.
इस बीच लड़ाकों के समूह से एक शख़्स भीड़ की ओर बढ़ा. यह आदमी था- मोहम्मद अब्दुल्ला अल-क़हतानी.
मस्जिद से कहा गया, यही हैं माहदी जिऩके आने का सबको इंतज़ार था. तभी सबके सामने जुहेमान ने भी मोहम्मद अब्दुल्ला के प्रति सम्मान अदा किया ताकि बाक़ी लोग भी उनके प्रति सम्मान जताएं।
इस बीच जुहेमान ने लड़ाकों से कहा कि मस्जिद को पूरी तरह बंद कर दें. कई हज यात्रियों को अंदर ही बंधक बना लिया गया. इसके बाद मीनारों पर स्नाइपर तैनात कर दिए गए जो ‘माहदी के दुश्मनों’ से लड़ने के लिए तैयार थे।
वे लोग सऊदी बलों को भ्रष्ट, अनैतिक और पश्चिम से जुड़े हुए मानते थे. इसलिए जब पुलिस वहां यह देखने आई कि क्या हो रहा है, लड़ाकों ने उनके ऊपर गोलियां से छन्नी कर दिया और सभी पुलिस वाले मारे गए और इस तरह से मस्जिद पर क़ब्ज़ा कर लिया गया।

इस बीच सऊदी अरब ने मस्जिद पर क़ब्ज़ा हो जाने की ख़बरों के प्रसारण या प्रकाशन पर पूरी तरह रोक लगा दी ताकि लोगो में दहशत न फैले परन्तु काफी लोगों को पता था कि मस्जिद पर कब्ज़ा हो चूका और और क्यों और किसने किया ये बहुत काम लोग जानते थे।

इसके बाद सऊदी प्रशासन ने मस्जिद को फिर से अपने नियंत्रण में लेने के लिए हज़ारों सैनिक और विशेष बल मक्का के लिए रवाना किए. जिनके पास भारी भरकम आटोमेटिक हथियार दिए गए ऊपर से सेना के लड़ाकू विमान भी तैनात किये गए . इस बीच सऊदी अरब के शाही परिवार ने धार्मिक नेताओं से मस्जिद के अंदर बल प्रयोग करने की इजाज़त मांगी. सऊदी बलों ने लगातार कई हमले किए और इससे मस्जिद का बड़ा हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया.

इधर मरने वालों की संख्या भी सैकड़ों में बढ़ती जा रही थी . गवाहों का कहना था कि आधे-आधे घंटे के अंतराल पर गोलियां चलने और धमाकों की आवाज़ आती रही और यह सिलसिला शाम तक चलता रहता वह मौजूद हर व्यक्ति डरा हुआ था।

सऊदी हेलिकॉप्टर घटनास्थल के ऊपर मंडरा रहे थे और फिर तोपों की मदद से मीनारों को निशाना बना रहे थे।

इस बीच सऊदी सुरक्षा बलों को मस्जिद के अंदर आकर पहले तल पर कब्ज़ा करने में क़ामयाबी मिली. और लडके बचने के लिए पीछे हटे और बेसमेंट में चले गए. वहां बहुत अँधेरा था पर वो अंधेरे में भी दिन-रात लड़ते रहे. लडको ने कई लोग अंदर बंधक बना लिए था।

भीषण लड़ाई और भारी गोलीबारी के बीच ख़ुद को माहदी बताने वाला शख़्स घायल हो गया जबकि मान्यताओं के हिसाब से माहदी तो घायल हो ही नहीं सकते थे.

मोहम्मद अब्दुल्ला अल-क़हतानी जिस समय दूसरे फ़्लोर पर थे, उन्हें गोली लग गई. लोग चिल्लाने लगे- माहदी ज़ख़्मी हैं, माहदी जख़्मी हैं. कुछ लोग उनकी ओर गए ताकि उन्हें बचा सकें मगर भारी फ़ायरिंग के कारण उन्हें पीछे हटना पड़ा. तभी कुछ लोग नीचे उतरकर जुहेमान के पास गए और कहा कि माहदी ज़ख़्मी हैं. यह सुनकर अपने साथ लड़ रहे लड़ाकों से जुहेमान ने कहा- इनकी बातों पर यक़ीन न करो, ये भगौड़े हैं।

मस्जिद पर इस क़ब्ज़े को ख़त्म करने में मदद के लिए पाकिस्तान ने कमांडो की एक टीम सऊदी अरब भेजी थी. उधर कुछ फ्रेंच कमांडो भी गुप्त अभियान के तहत सऊदी अरब गए ताकि वे सऊदी सुरक्षाबलों को सलाह दे सकें और उपकरणों आदि के ज़रिये उनकी मदद कर सकें.

योजना बनी कि अंडरग्राउंड हिस्से में छिपे लड़ाकों को बाहर निकालने के लिए गैस इस्तेमाल की जाए. परन्तु लडको की गोलिया बारूद ख़तम होने लगे और आख़िरकार दो हफ़्तों बाद अंदर बचे हुए लड़ाकों ने आत्मसमर्पण कर दिया.

यह लड़ाई 20 नवंबर से चार दिसंबर 1979 तक चली।

63 लोगों को सऊदी अरब ने फांसी दे दी, जिनमें जुहेमान भी शामिल थे. बाक़ियों को जेल में डाल दिया गया.

इसके बाद सऊदी प्रशासन तथाकथित माहदी के शव की तस्वीर प्रकाशित की थी. इस लड़ाई के कारण मस्जिद को भारी नुक़सान पहुंचा था, सैकड़ों की मौत हुई थी और लगभग एक हज़ार लोग घायल हुए थे.

बेशक मस्जिद क्षतिग्रस्त हो गई मगर मक्का को नुक़सान नहीं पहुंचा.

इस घटना के बाद सऊदी शाही परिवार ने और ज़्यादा कट्टरपंथी इस्लामिक छवि बनाने की कोशिश की. इसके लिए उसने कई सारे परिवर्तन किए और जिहाद को बढ़ावा दिया.

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