क्या निर्वाचन आयोग बीजेपी का गुलाम ?

क्या निर्वाचन आयोग बीजेपी का गुलाम ?

आज जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी के आईटी सेल के प्रमुख ने कर्नाटक चुनाव की तारीख़ो का एलान चुनाव आयोग से पहले ही कर दिया, उससे ये साबित हो जाता है कि देश का निर्वाचन आयोग आज पूरी निष्पक्षता से काम नहीं कर रहा है, निर्वाचन आयोग भारतीय जनता पार्टी के इशारे पर काम कर रहा है।

आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता एंव राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा कि ‘मौजूदा वक्त में चुनाव आयोग निष्पक्षता के साथ कार्रवाई नहीं कर रहा है, चाहे वो ईवीएम का मसला हो या फिर दिल्ली में 20 विधायकों का मामला हो, या फिर गुजरात या हिमाचल की चुनाव तारीखों का मामला हो, कई बार तो यह हुआ कि चुनाव आयोग ने प्रधानमंत्री की रैलियों तक का इंतज़ार किया और उसके बाद ही चुनाव की तारीखों का एलान किया गया। आज जो घटना हुई उसने सारी सीमाओं को पार कर दिया है’

‘चुनाव की तारीखों का एलान चुनाव आयोग से पहले भारतीय जनता पार्टी के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय कर देते हैं। आज भारतीय निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता पर बहुत बड़ा सवालिया निशान लग गया है। अगर इस मामले में दोषियों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं होती है तो 2019 के लोकसभा चुनाव निष्पक्ष नहीं पाएंगे।‘

‘जिस तरह से पूरे देश के सामने है कि पूर्व चुनाव आयुक्त श्री ए के जोति ने अपने रिटायर होने से एक दिन पहले आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को अयोग्य घोषित करने का फ़ैसला लिया था वो पूरी तरह से बीजेपी के इशारे पर ही हुआ था और वो फैसला भारतीय जनता पार्टी का ही था।‘

‘आज जिस तरह से कर्नाटक के चुनाव की तारीखों का एलान करते वक्त चुनाव आयोग से पहले बीजेपी के आईटी सेल के प्रमुख ने चुनाव की तारीखों का एलान कर दिया वो बेहद गंभीर है, अगर हमने अब आवाज़ नहीं उठाई तो लोकतंत्र का तमाशा बनाने में भारतीय जनता पार्टी कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी।‘

‘देश के सभी विपक्षी दलों को मिलकर आवाज़ उठानी होगी और बीजेपी सरकार की इस तानाशाही का विरोध करना होगा।‘

आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता एंव राष्ट्रीय प्रवक्ता आशुतोष ने कहा कि ‘चाहे नोटबंदी के बाद खराब हुई हालत के बीच उत्तर प्रदेश समेत दूसरे राज्यों के चुनाव की तारीखों का एलान करने वाली बात हो जिसमें मोदी जी द्वारा की गई रैलियों का विशेष ध्यान रखा गया, या फिर गुजरात और हिमाचल के चुनाव तारीखों की बात रही हो, राज्यसभा के चुनाव में भी अहमद पटेल के मामले में चुनाव आयोग को देर रात तक सक्रिय रखा गया था, और आम आदमी पार्टी के मामले में तो चुनाव आयोग ने सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए भारतीय जनता पार्टी के इशारे पर ही काम किया।

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