26 साल से लड़ रहा रईसुद्दीन, 5 बीघा ज़मीन… और सवाल, कहाँ है कानून? | Yogi Adityanath | Sach Ki Raftar
दोस्तों, आज की कहानी सुनने से पहले एक सवाल ज़रूर सोचिए —अगर एक गरीब मज़दूर अपने परिवार के साथ 20 साल से अपनी ही ज़मीन के लिए कोर्ट, थाने की दहलीज़ों के चक्कर काट रहा हो…और दूसरी तरफ़, माफिया खुलेआम उसी ज़मीन पर कब्ज़ा कर इमारत खड़ी करना चाह रहे हों… तो क्या ये “नया उत्तर प्रदेश” कहलाने लायक है?
👉 मामला मेरठ ज़िले के परतापुर थाना क्षेत्र के ग्राम डूंगरावली का है, जहाँ गरीब रईसुद्दीन और उसका परिवार पिछले 26 साल से इंसाफ़ की लड़ाई लड़ रहा है। लेकिन इंसाफ़ अब तक सिर्फ़ “फाइलों” में है…
क्योंकि मैदान में आज भी दबंग भू-माफिया और उनके राजनीतिक आका हावी हैं।
कहानी शुरू होती है सन 1998 से —रईसुद्दीन के पिता अली हसन ने अपनी पाँच बीघा ज़मीन सिर्फ़ एक लाख रुपए में गिरवी रखी थी। लेकिन गिरवी का कागज़ क्या बना, भू-माफियाओं के लिए करोड़ों की लॉटरी! कागज़ों का खेल ऐसा चला कि एक लाख की ज़मीन धीरे-धीरे 2 करोड़ के सौदों में बदल गई —कभी बेटे के नाम, कभी बहू के नाम, तो कभी किसी रिश्तेदार के नाम! और फिर वही पुराना स्क्रिप्टेड ड्रामा —फर्जी Power of Attorney, कागज़ों पर धोखाधड़ी, और सबसे ऊपर “नेता जी का संरक्षण”!
रईसुद्दीन जब आवाज़ उठाता है, तो 2012 में उसे और उसके भाइयों को फर्जी मुकदमे में फँसाकर जेल भेज दिया जाता है। जेल जाने के बाद उसकी ज़मीन की पैमाइश होती है, और धीरे-धीरे कब्ज़ा बढ़ता चला जाता है। रईसुद्दीन का आरोप है कि इस पूरे खेल के पीछे सपा के एक कद्दावर नेता का हाथ है, जो आज भी मेरठ से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। और सोचिए, इतने गंभीर आरोपों के बावजूद पुलिस ने अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की! यहाँ तक कि रईसुद्दीन को दो बार किडनैप किया गया,
पहली बार पचास हज़ार, दूसरी बार पाँच लाख की रंगदारी मांगी गई पर उत्तर प्रदेश पुलिस के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी।
अब सवाल उठता है —क्या योगी राज में भी कुछ “नेता और माफिया” ऐसे हैं, जो कानून से ऊपर हैं? क्योंकि सीएम योगी आदित्यनाथ बार-बार कहते हैं —“माफिया मिट जाएंगे, कानून का राज चलेगा।” लेकिन मेरठ के डूंगरावली में तो कहानी कुछ और ही कहती है।
भू-माफिया आज भी ज़मीन पर कब्ज़ा कर रहे हैं, रास्ते बंद करने की धमकी दे रहे हैं, और गाँव के लोग रोज़ डर के साए में जी रहे हैं।
एक बुज़ुर्ग माँ की आँखों में डर है —वो कहती हैं, “मेरे बेटे जब काम से देर रात लौटते हैं तो दिल धड़कने लगता है, कहीं फिर से उन्हें उठा ना ले जाएँ।” क्या यही “राम राज्य” है जहाँ गरीब माँ को अपने बेटे की सुरक्षा की दुआ रोज़ मांगनी पड़े?
आज ज़रूरत है कि योगी सरकार और उत्तर प्रदेश पुलिस, इस मामले को सिर्फ़ एक फाइल नहीं, बल्कि एक टेस्ट केस की तरह देखें। क्योंकि अगर रईसुद्दीन जैसे लोग अपने ही हक़ के लिए लड़ते-लड़ते थक जाएँ, तो फिर “बाबा का बुलडोज़र” सिर्फ़ नारे में ही रह जाएगा।
दोस्तों, ये कहानी खत्म नहीं हुई — क्योंकि रईसुद्दीन की लड़ाई अब भी जारी है, और उसकी उम्मीद बस इतनी है — कि किसी दिन “इंसाफ़ की आवाज़” वाक़ई सच की रफ़्तार से चलेगी।
📢 अब सवाल आपसे — क्या पुलिस और प्रशासन जानबूझकर ऐसे माफियाओं को बचा रहे हैं? या फिर योगी सरकार के वादे केवल मंचों तक सीमित रह गए हैं? कमेंट में अपनी राय ज़रूर लिखिए, क्योंकि सवाल उठाना ही असली पत्रकारिता है। ये खबर सच की रफ़्तार के मेरठ प्रमुख गौहर अनवार ने जाँच पड़ताल कर आप तक पहुंचाई।
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